महाभारत मे गांधारी के 100 पुत्रों के जन्म का रहस्य, अखिरकार गांधारी ने एक साथ 100 कौरवों को कैसे जन्म दिया था?
भारत से जुड़ी कई ऐसी कथा सुनने को मिलती है जो आपकी और हम सभी की समझ से परे है। ऐसी ही एक कथा महाभारत में 100 कौरव के जन्म से संबंधित है। हर व्यक्ति को यह सुनकर तो आश्चर्य जरूर होता होगा कि आखिरकार गांधारी ने एक साथ 100 कौरवों को कैसे जन्म दिया था? इससे जुड़ी सच्चाई कम ही लोगों को पता होगी, लेकिन आज हम आपको इस रहस्य के पीछे की सच्चाई से आपको जरूर अवगत कराएंगे ।
कौरवों के जन्म का रहस्य
हर व्यक्ति को 100 कौरवो के जन्म की घटना एक देवीय चमत्कार लगता होगा लेकिन हम आपको बता दें कि गांधारी के गर्भ से 100 कौरवों का जन्म कोई दैवीय चमत्कार नहीं, बल्कि एक ऐसी घटना है जो भारत के प्राचीन रहस्यमयी विज्ञान का उदाहरण है। गांधारी गंधार राज्य के राजा सुबल की सुपुत्री थी।
समय बीता और गांधारी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार धृतराष्ट्र के साथ हुआ। क्योंकि धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे इसीलिए गांधारी ने भी आजीवन आँखों पर पट्टी बांधने का फैसला किया और आंखें होते हुए भी नेत्रहीन बनके रहने लगी और ऐसे ही अपना सारा जीवन व्यतित किया ।
कौरवों का जन्म
शादी के कुछ वर्ष बाद गांधारी ने 100 पुत्र और 1 पुत्री को जन्म दिया। पुरुवंश के होने के कारण गांधारी और धृतराष्ट्र के पुत्रों को कौरव नाम से जाना गया। 100 कौरवों का जन्म इतिहास की सबसे विचित्र घटना है। गांधारी को बचपन से ही धार्मिक कार्यों में बेहद रुचि थी। आपको बता दें कि गांधारी को भगवान शिव का अनन्य भक्त माना जाता है। कहते हैं कि महर्षि वेदव्यास एक बार हस्तिनापुर आये और गांधारी ने उनकी खूब सेवा की। गांधारी की लगन और आस्था को देखकर श्री वेदव्यास जी ने गांधारी को 100 पुत्र होने का वरदान दिया।
महर्षि वेदव्यास के आशीर्वाद के अनुसार गांधारी गर्भवती हुई। गर्भधारण कर लेने के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गए किंतु गांधारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर ज़ोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया। उधर वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे उसी समय गांधारी के पास आकर बोले गांधारी तुमने बहुत गलत किया, मेरा दिया हुआ वर कभी खाली नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही 100 कुंड तैयार करवाओ और उनमें घी भरवा दो। तभी गांधारी ने एक पुत्र की भी इच्छा जताई। वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का, जिससे उस पिंड के 101 टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए कुंडों में रखवा दिया। उसके बाद उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर वेदव्यास अपने आश्रम चले गए।
दो वर्ष पूरे हो गए और फिर गांधारी ने सारे कुण्ड खोलें। सबसे पहले कुंड से दुर्योधन का जन्म हुआ, बाकी गुंडों से 99 पुत्र और एक पुत्री का जन्म हुआ। गांधारी की पुत्री का नाम दुशाला था। ऐसा कहा जाता है कि जन्म लेने के बाद ही दुर्योधन गधे की तरह रेंकने लगा, जिसे देखकर पंडितों और ज्योतिषियों ने कहा कि यह बच्चा कुल का नाश कर देगा और ज्योतिषियों ने धृतराष्ट्र से दुर्योधन का त्याग करने के लिए कहा, लेकिन पुत्र मोह से विवश धृतराष्ट्र ऐसा नहीं कर सके। और आगे चलकर ज्योतिषियों की वतिष्यवाणी सत्प हुई और सभी कोरवो सहित सारे कुल का विनाश हुआ ।
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